
रायपुर: छत्तीसगढ़ की परंपरा में “हरेली” मानव और प्रकृति के जुड़ाव को नमन करने का उत्सव है। हरेली आती है तो छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहान, गाँव-शहर, हल और बैल, बच्चे-युवा-महिलाएँ सभी इस पर्व के हर्षाेल्लास से भर जाते हैं। जिस हरेली पर्व से छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरुआत होती है, उसके स्वागत में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री निवास के द्वार भी सज गए हैं। पूरा मुख्यमंत्री निवास श्रावण अमावस्या को मनाये जाने वाले हरेली पर्व की सुग्घर परंपरा के रंग में रंग गया है।
हरेली पर मुख्यमंत्री निवास की सजावट के तीन प्रमुख हिस्से हैं। प्रवेश द्वार, मध्य तोरण द्वार और मुख्य मंडप। प्रवेश द्वार में बस्तर के मेटल आर्ट की झलक है। इस द्वार पर लोगों के स्वागत में छत्तीसगढ़ का पारम्परिक वाद्य तुरही के मध्य में भगवान गणेश की प्रतिकृति है और मेटल आर्ट का घोड़ा भी उकेरा गया है।
प्रवेश द्वार के बाद मध्य में तोरण द्वार है जिसे पारम्परिक टोकनी से सजाया गया है। साथ ही रंग-बिरंगी छोटी झंडियाँ तोरण के रूप में शोभा बढ़ा रही हैं। इस हिस्से में नीम और आम पत्तों की झालर को हरेली की परम्परा के प्रतीक के रूप में लगाया गया है। पूरी सजावट का मुख्य आकर्षण वे छोटी-छोटी रंग-बिरंगी गेड़ियां हैं, जिनका सुंदर स्वरूप यहां से मुख्य मंडप तक हर जगह दिखता है।
मुख्य मंडप द्वार को सरगुजा की कला के रंगों से आकर्षक बनाया गया है। इस द्वार की छत को पैरा से छाया गया है और सरगुजिहा भित्ति कला का के मनमोहक चित्र बनाये गए हैं। कई रंगों से सजा बैलगाड़ी का चक्का भी इस द्वार की रौनक बढ़ा रहा है। मुख्य कार्यक्रम मंडप के बाएँ हिस्से में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण परिवेश का पारम्परिक घर बना है। इस घर के आहते को मैदानी छत्तीसगढ़ की चित्रकला से सजाया गया है।
घर के आँगन में तुलसी चौरा और गौशाला है, जहाँ हल, कुदाल, रापा, गैती, टंगिया, सब्बल जैसे पारम्परिक कृषि यंत्र के साथ ही गोबर के उपले रखे हैं। इस ग्रामीण घर की दीवारों को सरगुजा की रजवार पेंटिंग के सुंदर चित्रों से सजाया गया है। कार्यक्रम मंडप में कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी मुख्य आकर्षण है। खास बात यह है कि इस प्रदर्शनी में पारम्परिक और आधुनिक कृषि यंत्रों को एक साथ प्रदर्शित किया गया है। पैडी सीडर, जुड़ा, बियासी हल, तेंदुआ हल और ट्रैक्टर जैसे यंत्र प्रदर्शित हैं। मंडप में एक ओर पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के जलपान का हिस्सा है तो वहीं सावन का झूला भी सावन के फुहारों भरे मौसम के आंनद को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ का पारम्परिक रहचुली झूला भी आकर्षण का केंद्र है।
संस्कृति की छटा बिखेरते पारम्परिक नृत्य:
हरेली के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास में गेड़ी नृत्य और राउत नाचा जैसे पारम्परिक लोक नृत्य की छटा भी मनमोहक धुनों के साथ बिखर रही है। गेड़ी नृत्य के लिए बिलासपुर से दल आमंत्रित किया गया है। गेड़ी नृत्य के दल ने वेशभूषा में परसन वस्त्र के साथ सिर पर सीकबंद मयूर पंख का मुकुट, कौड़ी व चिनीमिट्टी से बनी माला और कौड़ी जड़ित जैकेट पहन रखा है।
यह दल माँदर, झाँझ, झुमका, खँजरी, हारमोनियम और बाँसुरी की मधुर धुन में अपनी प्रस्तुति दे रही है। ग़ौरतलब है कि गेड़ी नृत्य की शुरुआत हरेली के दिन से होती है। हरेली के मौके पर मुख्यमंत्री निवास में गड़बेड़ा (पिथौरा) से राउत नाचा के लिए 50 लोगों का दल पहुँचा है। इस दल में पुरुषों ने जहाँ धोती-कुर्ता के साथ सिर पर कलगी लगी पगड़ी, कौड़ी जड़ित बाजूबंद और पेटी के साथ पैरों में घुँघरू पहना है तो महिलाएँ भी पारम्परिक श्रृंगारी करके पहुँची हैं। इन दोनों ही दलों के सदस्यों ने बताया कि उन्हें इस मौक़े पर मुख्यमंत्री निवास पहुँचने का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।